आमिर खान की फिल्म सितारे जमीन पर 20 जून को रिलीज होने जा रही है. यह फिल्म काफी चर्चा में है, क्योंकि इसमें ऑटिज्म और डाउन सिंड्रोम जैसी बौद्धिक अक्षमताओं जैसे विषयों को छुआ गया है. मूवी की कहानी एक गुस्सैल कोच के बारे में है, जिसे नशे में धुत होने के बाद न्यूरोडाइवर्जेंट वयस्कों को प्रशिक्षित करने का काम सौंपा गया है. आमिर खान को परफेक्शनिस्ट कहा जाता है और उन्होंने अक्सर ऐसी फिल्में बनाई हैं, जो एक मजबूत संदेश देती है

यह फिल्म स्पेनिश फिल्म 'कैंपियोनेस' की रीमेक और 2007 में आई 'तारे ज़मीन पर' का सीक्वल है। इस बार आमिर खान ने गुलशन अरोड़ा का किरदार निभाया है, जो एक घमंडी, शराबी और गुस्सैल बास्केटबॉल कोच है। उसे न तो भावनात्मक बुद्धिमत्ता की समझ है और न ही दूसरों के प्रति कोई सहानुभूति। अपने सीनियर और फिर ट्रैफिक पुलिस से झगड़े के बाद कोर्ट उसे तीन महीने की सामुदायिक सेवा की सजा सुनाता है। उसकी सजा एक ऐसी बास्केटबॉल टीम को कोचिंग देना है, जिसके सभी खिलाड़ी बौद्धिक रूप से विकलांग हैं। शुरू में गुलशन 'सितारे' टीम के प्रति तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करता है। लेकिन जैसे-जैसे वह खिलाड़ियों को जानने लगता है, अहंकार टूटता है और उसके भीतर बदलाव शुरू होता है। फिल्म इसी सफर को दिखाती है। और यहां आमिर हीरो नहीं हैं... बल्कि 'सितारे' हैं।

आर.एस. प्रसन्ना ने एक संवेदनशील विषय को उपदेशात्मक बनाए बिना मनोरंजन और जागरूकता के बीच संतुलन बनाए रखते हुए निर्देशित किया है। रंग योजना और संपादन सराहनीय है। अधिकांश दृश्यों में फिल्म की ऊर्जा चरम पर है, जबकि कुछ हिस्से थोड़े खिंचे हुए लगते हैं। इसके बावजूद निर्देशक विषय की गरिमा को बनाए रखते हुए दर्शकों के दिलों को छूने में सफल होते हैं यह फिल्म न केवल देखने लायक है, बल्कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण कहानी भी बताती है, और वह भी बिना किसी उपदेश के।

'हमारी किस्मत जो है ना, वो हथेली पर नहीं, क्रोमोसोम पर बनके आती है' और 'सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है' जैसे डायलॉग सीधे दिल को छू जाते हैं। ये पंक्तियाँ न सिर्फ फिल्म को भावनात्मक गहराई देती हैं बल्कि सोचने पर मजबूर भी करती हैं।

Bollywood Hi 4 Star rating

Review by Farid shaikh